Wednesday, November 19, 2008

मैं निमंत्रण दे रहा हूं...

“सपनों का मर जाना” इस ब्लॉग को लेकर यारों दोस्तों से अक्सर बातचीत होती रहती है...मुझे भी लगता है कि मैं इस ब्लॉग के साथ न्याय नहीं कर पा रहा हूं...ज्यादातर पोस्ट सरजूपार की मोनालीसा (www.sarjuparkimonalisa.blogspot.com)के खाते में चली जाती है...रही सही बातें खेल (www.pardekepichekakhel.blogspot.com) पर
लिहाजा फिलहाल सपनों का मर जाना ब्लॉग समर्पित कर रहा हूं तमाम साथियों को, जो भी चाहे इस नाम से नया ब्लॉग बनाए- और अच्छी रचनाएं हम तक पहुंचाए...इस ब्लॉग पर सिवाय पाश की कविता के कुछ ज्यादा लिख भी नहीं पाया था...
खैर, इस ब्लॉग को अब मैं सरजूपार में ही जोड़ दे रहा हूं...और सरजूपार को पढ़ने के लिए जो भी चंद यार दोस्त आते हैं उन्हें बताना जरूरी है कि ज़ी न्यूज के पुराने सहयोगी पराग छापेकर के जरिए मैं पहुंचा था इस कविता तक...पराग ने हमारी डेस्क पर इन पक्तियों को चस्पा कर दिया था...
खैर, आप कविता पढ़िए


सबसे खतरनाक होता है..

पाश(अवतार सिंह संधु)

मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती,
पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती,
गद्दारी, लोभ का मिलना सबसे खतरनाक नहीं होती,
सोते हुये से पकडा जाना बुरा तो है,
सहमी सी चुप्पी में जकड जाना बुरा तो है,
पर सबसे खतरनाक नहीं होती,
सबसे खतरनाक होता है मुर्दा शान्ति से भर जाना,
न होना तडप का सब कुछ सहन कर जाना,
घर से निकलना काम पर और काम से लौट कर घर आना,
सबसे खतरनाक होता है, हमारे सपनों का मर जाना ।
सबसे खतरनाक होती है, कलाई पर चलती घडी, जो वर्षों से स्थिर है।
सबसे खतरनाक होती है वो आंखें जो सब कुछ देख कर भी पथराई सी है,
वो आंखें जो संसार को प्यार से निहारना भूल गयी है,
वो आंखें जो भौतिक संसार के कोहरे के धुंध में खो गयी हो,
जो भूल गयी हो दिखने वाले वस्तुओं के सामान्य
अर्थऔर खो गयी हो व्यर्थ के खेल के वापसी में ।
सबसे खतरनाक होता है वो चांद, जो प्रत्येक हत्या के बाद उगता है सुने हुए आंगन में,
जो चुभता भी नहीं आंखों में, गर्म मिर्च के सामान
सबसे खतरनाक होता है वो गीत जो मातमी विलाप के साथ कानों में पडती है,
और दुहराती है बुरे आदमी की दस्तक, डरे हुए लोगों के दरवाजे पर

7 comments:

MANVINDER BHIMBER said...

kitana sahi kaha hai aapne....dil ko chu gya

!!अक्षय-मन!! said...

BAHUT ACCHA ,,,,,
SAHI KAHA SAHI BAAT HAI......

विजय ठाकुर said...

सपने न हों तो जीना सचमुच व्यर्थ है. सपने ज़िंदा रहने पर ही व्यक्ति गतिमान है. पानी जब तक बहता रहे स्वच्छ रहता है, ठहर जाने पर उसमें भी सडन हो जाती है.

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

aapke sapne sakar ho. narayan narayan

Vineeta Yashsavi said...

Shabdo ki bhi kami padh gayi hai apke blog ko padhne ke baad.
bahut achha.

अभिषेक मिश्र said...

इस कविता की चंद पंक्तियाँ सुनी तो थीं, आज आपने उपलब्ध करा दी. धन्यवाद. 'सरजू पार की मोनालिसा' पेंटिंग में कहीं छुप सी गई है, आशा है ध्यान देंगे. स्वागत ब्लॉग परिवार और मेरे ब्लॉग पर भी.

संगीता पुरी said...

आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है। आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी बडी प्रतिष्‍ठा प्राप्‍त करेंगे। हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।