Friday, October 24, 2008

बच्चन के बहाने दर्शन


भाई शिवेंद्र,
ख्वाबों का सच होते सुना जरूर था, पर देखा नहीं था. अमिताभ बच्चन एक सपना था, जो हकीकत बनकर सामने खड़ा था. लीना यादव की फिल्म “तीन पत्ती”, मुराद सिर्फ इतनी थी कि सदी के महानायक के साथ काम करने का सिर्फ एक मौका मिल जाए.
तारीख 7 अक्टूबर...सेट पर मेरा कॉल टाइम था 10 बजे...मैं ठीक समय पर पहुंच भी गया...अब साहब इंतजार था बिग बी के आने का, पता चला उनका कॉल टाइम है 2 बजे का...बस इंतजार यहीं से शुरू हुआ...लोकेशन मधुसुदन मिल...भयानक गर्मी....भीतर 15 मिनट भी रूकना नामुमकिन सा लगा-मैंने सोचा बच्चन साहब का क्या होगा...खैर बच्चन साहब ठीक 2 बजे हाजिर हुए...और रात 10 बजे तक शूटिंग करते रहे- किसी से किसी भी बात की कोई शिकायत नहीं- सिर्फ काम...मैं दंग और स्तब्ध रह गया....
तारीख 8 अक्टूबर- मेरा और बच्चन साहब के दृश्य का फिल्मांकन होना था- मेरे प्राण सूख रहे थे- पर मैं जाहिर नहीं होने देने का अभिनय कर रहा था...सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि जब बच्चन साहब सेट पर होते हैं तो सेट पर आग होती है...और बिग बी शांत मन और भाव से उस अग्निपथ पर आगे-और आगे बढ़ते जाते हैं- बिना मुड़े...
ये सब होता चला गया...9 तारीख बच्चन साहब के बुखार में बीत गई...10 तारीख को पता चला कि यारी रोड के किसी बंग्ले में शूटिंग चल रही है...मैं 4 बंगला में रहता हूं...मैं चला गया...मैं जब वहां पहुंचा तो बच्चन साहब जा रहे थे, लीना यादव और अंबिका अमित जी को बधाई दे रहे थे-मैं भी पास जाकर खड़ा हो गया- बच्चन साहब ने सभी का शुक्रिया अदा किया- और अपने खास अंदाज में हाथ हिलाकर सबसे विदा ली और जलसे की प्रतीक्षा की तरफ चल दिए...
11 अक्टूबर- उनका जन्म दिवस...प्रतीक्षा हमारे ऑफिस के रास्ते में ही पड़ता है- मजमा लगा हुआ था
ऑफिस पहुंच कर खबर मिली की....वो सभी जानते हैं....बस

अभिषेक पांडे
24 अक्टूबर, 2008


ये वो खत है जो मेरे करीबी दोस्त अभिषेक पांडे ने मुझे लिखा है...तस्वीर में बच्चन साहब के पीछे बैठे अभिषेक का नाम दर्शन भी है...कहीं गलती से अभिषेक की जगह दर्शन लिख दूं तो सोच में मत पड़िएगा कि ये दर्शन कौन है, खैर जाहिर है दर्शन उस दिन की याद ताजा कराते हुए अपना खत खत्म करते हैं- जब जन्मदिन के दिन अचानक अमिताभ के अस्पताल जाने की खबर आई थी...बच्चन साहब अब स्वस्थ हो गए हैं...ईश्वर उन्हें लंबी उम्र दे...
अब चलिए जिस सपने के सच होने की बात अभिषेक ने कही है उसकी कहानी मैं सुनाता हूं आपको...इसी 22 तारीख की बात है, अभिषेक का फोन आया...
अभिषेक से फोन पर बात होती रहती है- उन्होंने फोन करके मुझे उस तस्वीर को देखने के लिए भी कहा था जिसमें वो बच्चन साहब के साथ नजर आ रहे हैं- मैं समझ सकता हूं कि अभिषेक कितने खुश होंगे (वैसे दिलचस्प बात ये है कि अमिताभ बच्चन ही नहीं हम और अभिषेक पांडे भी इलाहाबाद के ही रहने वाले हैं)
मैं समझ सकता हूं कि अभिषेक कितना खुश होगा, बच्चन साहब के साथ काम करके...इलाहाबाद में थिएटर- फिर पंजाब विश्वविद्यालय से थिएटर का डिप्लोमा-फिर दो-तीन साल शायद ऐसे गुजरे जिसके बारे में ऐसा कुछ नहीं जिसका उल्लेख किया जाए- हॉं मुझे इतना जरूर याद है कि उन दिनों अभिषेक गांवों में रंगमंच को लेकर कुछ काम कर रहा था- काम सार्थक था- पर पेट भरने के लिए नाकाफी...मैं दिल्ली में था और अभिषेक से साल-दो साल में एकाध मुलाकात होती थी...इलाहाबाद जाने पर एलनगंज में कभी मैं उनके घर चला जाता था, कभी वो मेरे घर आकर मुझे ले जाते थे...अभिषेक ने कभी नहीं कहा कि वो अपने काम से संतुष्ट नहीं- या उन्हें आने वाले कल से डर लगता है...पर ना जाने क्यों मुझे ऐसा लगता रहा कि मंजिल अभिषेक से अभी काफी दूर है- शायद अभिषेक उस रास्ते पर अभी चला भी नहीं, जिस पर आगे जाकर उसकी मंजिल है...इस बीच एक दो बार अभिषेक दिल्ली भी आया- सिदार्थ(चौथे इलाहाबादी और मेरे बेहद करीबी दोस्त- फिलहाल मुंबई में किसी आईटी कंपनी में) के घर हम लोग बैठे- सरजूपार की मोनालीसा का पाठ हुआ (किस अंदाज में उसका जिक्र मैं पहले ही कर चुका हूं- अपने पहले संस्मरण में)...सुबह दर्शन चला जाता- और हम बैठ जाते ये सोचने कि दर्शन की मंजिल कहां है...कहीं छूट तो नहीं जाएगा ये सबकुछ...कहीं कुछ साल बाद दर्शन इलाहाबाद में खाली हाथ तो नहीं घूम रहा होगा- बीच में दर्शन की सेहत भी खराब हो गई थी- मुंह पिचका पिचका दिखता था- लगता था क्या संघर्ष करने की हिम्मत कम तो नहीं हो रही...
फिर अचानक पिछले साल अभिषेक ने फोन किया कि मैं मुंबई आ गया हूं- क्या करोगे- यही सवाल था मेरा...
जवाब दर्शन ने दे दिया डेढ़ साल के भीतर ही...मैं ये नहीं कह रहा कि बच्चन साहब के साथ काम करके अभिषेक ने करियर की मंजिल पा ली- पर आज मैं कह सकता हूं कि अब वो उस रास्ते पर है जहां आगे उसकी मंजिल भी है...
वैसे हो सकता है कि मैंने अभिषेक के संघर्ष को ज्यादा गंभीरता से ले लिया हो- क्या पता वो कभी उतना परेशान रहा ही ना हो जितना मुझे लगता था- क्या पता उसे उसकी मंजिल तब भी उतनी ही करीब और साफ दिखती हो, जितनी आज दिख रही होगी- पर उसे लेकर जो मेरे दिल का डर था वो तो अब कम से कम खत्म हो गया-और क्या चाहिए...वेल डन दर्शन