Monday, March 29, 2010

सरजूपार की मोनालीसा: जाने क्यों वो गुल्लक आजकल मुझे घूरता रहता है

सरजूपार की मोनालीसा: जाने क्यों वो गुल्लक आजकल मुझे घूरता रहता है

जाने क्यों वो गुल्लक आजकल मुझे घूरता रहता है




जाने क्यों आजकल हर घर से बहुत शोर आता है
धब-धब-धब की आवाजें,
लगता है छत पर कोई कूद रहा है
चीखना चिल्लाना, रोना-गाना
लगता है “कुछ” हो गया

जाने क्यों आजकल सूरज भी अकड़ा हुआ है
नाराज है शायद मुझसे
सबसे पहले जगाने के लिए मुझे ही आ जाता है
मैं रात चाहे कितनी देर से सोया हूं
सुबह सबसे पहले जग जाता हूं
अपने आस-पड़ोस में सबसे पहले
बाहर निकलकर देखता हूं
तो इक्का दुक्का लोग नजर आते हैं

जाने क्यों आजकल दूसरों की बालकनी पर
कुछ ज्यादा ही सूखते कपड़े दिखते हैं मुझे
तमाम कपड़े, एक के ऊपर एक
गजे हुए से...एक दूसरे से चिपके हुए
रंग बिरंगी क्लिपों के साथ अटके हुए से

जाने क्यों आजकल मेरे घर में खाना बनाने वाला
बड़े ‘एटीट्यूड’ में रहता है
लगता है किसी पांच सितारा होटल का कुक हो
बहुत बिजी, काफी प्रोफेशनल
आता है-खाना बनाता है-चला जाता है
बात करने का टाइम ही नहीं है उसके पास

जाने क्यों आजकल मेरे बेडरूम की घड़ी
बहुत जोर जोर से आवाज करने लगी है
लगता है जानबूझकर परेशान कर रही हो
घड़ी, घड़ी की तरह नहीं
घड़ियाल की तरह बजती है
टक...टक...टक....टक
या तो इसे ठीक कराना होगा या फिर नई घड़ी खरीदूंगा

जाने क्यों आजकल घर की दीवारें एकदम बेरंग दिखती हैं
कहने को लाल-नीले-हल्के नारंगी रंग से रंगी पुती हैं
पर जाने क्यों उन रंगों में जान नहीं रही
कभी कभी तो मन करता है
कि इन पर दोबारा रंग करवा दूं

जाने क्यों आजकल बातों बातों में
आंखें गीली हो जाती हैं
कोई जीत जाए तो आंसू आ जाते हैं
कोई हार जाए तो आंसू आ जाते हैं
छिपाने पड़ते हैं अपने आंसू
लोग क्या कहेंगे, क्या सोचेंगे मेरे बारे में…

जाने क्यों वो गुल्लक आजकल मुझे घूरता रहता है
करीब 2 महीने पहले खरीदा था
90 फीसदी से ज्यादा भर भी गया है
पर पिछले एक हफ्ते से उसमें
एक रूपया तक नहीं पड़ा
क्या करूं घर लौटने पर सिक्का बचता ही नहीं जेब में
जाने क्यों...जाने क्यों...


(पिछले एक हफ्ते से शिवी इलाहाबाद में है और मैं गाजियाबाद में-अभी आधे घंटे पहले ही पता चला है कि जब वो लौटेगी तो मैं चेन्नई जा चुका रहूंगा...)

Wednesday, March 24, 2010

भारत में पहली बार


भारत में पहली बार साइन लैंग्वेज में डच फिल्मकारों की तरफ से 5 शॉर्ट फिल्मों को देखने का मौका- साधो का एक और खास कार्यक्रम।

Monday, March 22, 2010

सवालों की बौछार






एक रोज शिवी ने सवालों की बौछार कर दी
ये क्या है-वो क्या है...
ये गुल्लक है...
ये पित्ज़ा...
ये बप्पा जी हैं...
ये प्रिंटर है...
और ये इरेज़र है...
शिवी का अगला सवाल था
इरेज़र क्या होता है,
मैंने कहा
जब लिखते वक्त कोई
गलती हो जाती है
तो इरेज़र से उसे मिटा देते हैं,
शिवी बोली- मिटाकर दिखाओ,
उसे दिखाने के लिए
पहले पन्ने पर आड़ी तिरछी लाइनें खींची
फिर उन्हें मिटा कर दिखाया
खुश हो गई शिवी, बहुत खुश
मैं मन ही मन सोच रहा था
मेरी लाड़ली
काश! तूझे जिंदगी में
इरेज़र की जरूरत ही ना पड़े

(शिवी दो साल 6 महीने की हो गई है,19 तारीख को उसका मुंडन हुआ है...इस पोस्ट के साथ लगाई गई तस्वीर मुंडन से थोड़ी देर पहले की है...मुंडन के बाद की तस्वीरें भी जल्दी ही पोस्ट करूंगा। ये तस्वीरें इलाहाबाद में रहने वाले मेरे पुराने मित्र और बेहतरीन फोटोग्राफर कमल किशोर कमल ने खींची हैं।)