Tuesday, December 7, 2010

अलविदा स्वस्तिका....

2 साल की स्वस्तिका नहीं रही। सिर्फ 2 साल की स्वस्तिका। मां की गोद में चिपककर घाट पर आरती सुनने गई थी, मां ने सोचा होगा बिटिया में संस्कार आएंगे। जन्मदिन भी था शायद उसका। धमाका हुआ तो अपनी मां की गोद से छिटककर गिरी और फिर गंगा मां की गोद में चली गई।
गृह मंत्री पी चिंदबरम घटनास्थल पर पहुंचे। स्वस्तिका के पिता से बातचीत की। उन्हें ढांढ़स बंधाया। स्वस्तिका के पिता से कहा गया कि उन्हें उनकी बिटिया की पोस्टमार्टम रिपोर्ट दे दी जाएगी। क्या होगा उस पोस्टमार्टम रिपोर्ट का? मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाने के काम आएगी। सरकारी मदद लेने के काम आएगी या फिर जाने किस काम आएगी पोस्टमार्टम रिपोर्ट...
स्वस्तिका के पिता अध्यापक हैं। आरती के दौरान धमाका हुआ है उस वक्त वो बच्चों को पढ़ा रहे थे- जब तक भागकर अस्पताल पहुंचते नन्हीं बच्ची दम तोड़ चुकी थी, जिंदगी ने स्वस्तिका के पिता को एक नया पाठ पढ़ाया था।
2 साल की मासूम स्वस्तिका ने अभी हाल ही में साफ बोलना शुरू किया होगा, चाल में एक रफ्तार आई होगी। रफ्तार से ज्यादा विश्वास कि अब मैं गिरूंगी नहीं...पर धमाके की गूंज ने उसके विश्वास को मात दे दी।
अभी तो स्वस्तिका के मां-बाप ने ये सोचना शुरू ही किया होगा कि बिटिया बड़ी हो रही है- उसका ज्यादा ख्याल रखना होगा। ठंढ़ के दिन है उसे सर्दी से बचाना होगा। मां के पास अगर वक्त होगा तो शायद स्वेटर बुनने में भी लग गई होगी। दादी-नानी रोज नए नुस्खे बताती होंगी कि छोटे बच्चों को ठंढ़ से कैसे बचाया जाता है। पर अब तो कलेजा ही ठंढ़ा हो गया।
मां-बाप बच्चे के गोद में आते ही सपने देखने लगते हैं। स्वस्तिका के मां बाप ने भी जरूर देखे होंगे सपने...डॉक्टर बनाएंगे-इंजीनियर बनाएंगे...नहीं नहीं इसकी उंगलियां लंबी है आर्टिस्ट बनेगी। अब घर में उसकी तस्वीर लगाने के सिवाय कुछ नहीं कर सकते स्वस्तिका के मां-बाप।

Monday, September 20, 2010

जीत के हकदार गिरीजेश को वोट दें, प्लीज...

मित्रों,मेरे बेहद करीबी दोस्त गिरिजेश की तरफ से ये वोट अपील है। कृपया वोट दें- मैं इस बात की गारंटी लेता हूं कि वो जीत के हकदार हैं। उन्हें आपका वोट चाहिए। दरअसल रेडियोसिटी 91.10 FM पर चल रहा है - सिटी का सुपर सिंगर। करीब 10,000 प्रतियोगियों और कई राउंड्स की चुनौती पास करते हुए गिरिजेश FINAL-5 में पहुंच गए हैं, उन्हें आपका वोट चाहिए.
मोबाइल पर टाइप कीजिए SINGER स्पेस दीजिए और लि़खिए 02
इसे 57007 पर भेज दीजिए।
वोटिंग बेहद अहम है

Saturday, May 8, 2010

काबुलीवाला

(रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कहानी)
मेरी पाँच बरस की लड़की मिनी से घड़ीभर भी बोले बिना नहीं रहा जाता। एक दिन वह सवेरे-सवेरे ही बोली, "बाबूजी, रामदयाल दरबान है न, वह ‘काक’ को ‘कौआ’ कहता है। वह कुछ जानता नहीं न, बाबूजी।" मेरे कुछ कहने से पहले ही उसने दूसरी बात छेड़ दी। "देखो, बाबूजी, भोला कहता है – आकाश में हाथी सूँड से पानी फेंकता है, इसी से वर्षा होती है। अच्छा बाबूजी, भोला झूठ बोलता है, है न?" और फिर वह खेल में लग गई।

मेरा घर सड़क के किनारे है। एक दिन मिनी मेरे कमरे में खेल रही थी। अचानक वह खेल छोड़कर खिड़की के पास दौड़ी गई और बड़े ज़ोर से चिल्लाने लगी, "काबुलीवाले, ओ काबुलीवाले!"

कँधे पर मेवों की झोली लटकाए, हाथ में अँगूर की पिटारी लिए एक लंबा सा काबुली धीमी चाल से सड़क पर जा रहा था। जैसे ही वह मकान की ओर आने लगा, मिनी जान लेकर भीतर भाग गई। उसे डर लगा कि कहीं वह उसे पकड़ न ले जाए। उसके मन में यह बात बैठ गई थी कि काबुलीवाले की झोली के अंदर तलाश करने पर उस जैसे और भी
दो-चार बच्चे मिल सकते हैं।

काबुली ने मुसकराते हुए मुझे सलाम किया। मैंने उससे कुछ सौदा खरीदा। फिर वह बोला, "बाबू साहब, आप की लड़की कहाँ गई?"

मैंने मिनी के मन से डर दूर करने के लिए उसे बुलवा लिया। काबुली ने झोली से किशमिश और बादाम निकालकर मिनी को देना चाहा पर उसने कुछ न लिया। डरकर वह मेरे घुटनों से चिपट गई। काबुली से उसका पहला परिचय इस तरह हुआ। कुछ दिन बाद, किसी ज़रुरी काम से मैं बाहर जा रहा था। देखा कि मिनी काबुली से खूब बातें कर रही है और काबुली मुसकराता हुआ सुन रहा है। मिनी की झोली बादाम-किशमिश से भरी हुई थी। मैंने काबुली को अठन्नी देते हुए कहा, "इसे यह सब क्यों दे दिया? अब मत देना।" फिर मैं बाहर चला गया।

कुछ देर तक काबुली मिनी से बातें करता रहा। जाते समय वह अठन्नी मिनी की झोली में डालता गया। जब मैं घर लौटा तो देखा कि मिनी की माँ काबुली से अठन्नी लेने के कारण उस पर खूब गुस्सा हो रही है।

काबुली प्रतिदिन आता रहा। उसने किशमिश बादाम दे-देकर मिनी के छोटे से ह्रदय पर काफ़ी अधिकार जमा लिया था। दोनों में बहुत-बहुत बातें होतीं और वे खूब हँसते। रहमत काबुली को देखते ही मेरी लड़की हँसती हुई पूछती, "काबुलीवाले, ओ काबुलीवाले! तुम्हारी झोली में क्या है?"

रहमत हँसता हुआ कहता, "हाथी।" फिर वह मिनी से कहता, "तुम ससुराल कब जाओगी?"

इस पर उलटे वह रहमत से पूछती, "तुम ससुराल कब जाओगे?"

रहमत अपना मोटा घूँसा तानकर कहता, "हम ससुर को मारेगा।" इस पर मिनी खूब हँसती।

हर साल सरदियों के अंत में काबुली अपने देश चला जाता। जाने से पहले वह सब लोगों से पैसा वसूल करने में लगा रहता। उसे घर-घर घूमना पड़ता, मगर फिर भी प्रतिदिन वह मिनी से एक बार मिल जाता।

एक दिन सवेरे मैं अपने कमरे में बैठा कुछ काम कर रहा था। ठीक उसी समय सड़क पर बड़े ज़ोर का शोर सुनाई दिया। देखा तो अपने उस रहमत को दो सिपाही बाँधे लिए जा रहे हैं। रहमत के कुर्ते पर खून के दाग हैं और सिपाही के हाथ में खून से सना हुआ छुरा।

कुछ सिपाही से और कुछ रहमत के मुँह से सुना कि हमारे पड़ोस में रहने वाले एक आदमी ने रहमत से एक चादर खरीदी। उसके कुछ रुपए उस पर बाकी थे, जिन्हें देने से उसने इनकार कर दिया था। बस, इसी पर दोनों में बात बढ़ गई, और काबुली ने उसे छुरा मार दिया।

इतने में "काबुलीवाले, काबुलीवाले", कहती हुई मिनी घर से निकल आई। रहमत का चेहरा क्षणभर के लिए खिल उठा। मिनी ने आते ही पूछा, ‘’तुम ससुराल जाओगे?" रहमत ने हँसकर कहा, "हाँ, वहीं तो जा रहा हूँ।"

रहमत को लगा कि मिनी उसके उत्तर से प्रसन्न नहीं हुई। तब उसने घूँसा दिखाकर कहा, "ससुर को मारता पर क्या करुँ, हाथ बँधे हुए हैं।"

छुरा चलाने के अपराध में रहमत को कई साल की सज़ा हो गई।

काबुली का ख्याल धीरे-धीरे मेरे मन से बिलकुल उतर गया और मिनी भी उसे भूल गई।

कई साल बीत गए।

आज मेरी मिनी का विवाह है। लोग आ-जा रहे हैं। मैं अपने कमरे में बैठा हुआ खर्च का हिसाब लिख रहा था। इतने में रहमत सलाम करके एक ओर खड़ा हो गया।

पहले तो मैं उसे पहचान ही न सका। उसके पास न तो झोली थी और न चेहरे पर पहले जैसी खुशी। अंत में उसकी ओर ध्यान से देखकर पहचाना कि यह तो रहमत है।

मैंने पूछा, "क्यों रहमत कब आए?"

"कल ही शाम को जेल से छूटा हूँ," उसने बताया।

मैंने उससे कहा, "आज हमारे घर में एक जरुरी काम है, मैं उसमें लगा हुआ हूँ। आज तुम जाओ, फिर आना।"

वह उदास होकर जाने लगा। दरवाजे़ के पास रुककर बोला, "ज़रा बच्ची को नहीं देख सकता?"

शायद उसे यही विश्वास था कि मिनी अब भी वैसी ही बच्ची बनी हुई है। वह अब भी पहले की तरह "काबुलीवाले, ओ काबुलीवाले" चिल्लाती हुई दौड़ी चली आएगी। उन दोनों की उस पुरानी हँसी और बातचीत में किसी तरह की रुकावट न होगी। मैंने कहा, "आज घर में बहुत काम है। आज उससे मिलना न हो सकेगा।"

वह कुछ उदास हो गया और सलाम करके दरवाज़े से बाहर निकल गया।

मैं सोच ही रहा था कि उसे वापस बुलाऊँ। इतने मे वह स्वयं ही लौट आया और बोला, “'यह थोड़ा सा मेवा बच्ची के लिए लाया था। उसको दे दीजिएगा।“

मैने उसे पैसे देने चाहे पर उसने कहा, 'आपकी बहुत मेहरबानी है बाबू साहब! पैसे रहने दीजिए।' फिर ज़रा ठहरकर बोला, “आपकी जैसी मेरी भी एक बेटी हैं। मैं उसकी याद कर-करके आपकी बच्ची के लिए थोड़ा-सा मेवा ले आया करता हूँ। मैं यहाँ सौदा बेचने नहीं आता।“

उसने अपने कुरते की जेब में हाथ डालकर एक मैला-कुचैला मुड़ा हुआ कागज का टुकड़ा निकला औऱ बड़े जतन से उसकी चारों तह खोलकर दोनो हाथों से उसे फैलाकर मेरी मेज पर रख दिया। देखा कि कागज के उस टुकड़े पर एक नन्हें से हाथ के छोटे-से पंजे की छाप हैं। हाथ में थोड़ी-सी कालिख लगाकर, कागज़ पर उसी की छाप ले ली गई थी। अपनी बेटी इस याद को छाती से लगाकर, रहमत हर साल कलकत्ते के गली-कूचों में सौदा बेचने के लिए आता है।

देखकर मेरी आँखें भर आईं। सबकुछ भूलकर मैने उसी समय मिनी को बाहर बुलाया। विवाह की पूरी पोशाक और गहनें पहने मिनी शरम से सिकुड़ी मेरे पास आकर खड़ी हो गई।

उसे देखकर रहमत काबुली पहले तो सकपका गया। उससे पहले जैसी बातचीत न करते बना। बाद में वह हँसते हुए बोला, “लल्ली! सास के घर जा रही हैं क्या?”

मिनी अब सास का अर्थ समझने लगी थी। मारे शरम के उसका मुँह लाल हो उठा।

मिनी के चले जाने पर एक गहरी साँस भरकर रहमत ज़मीन पर बैठ गया। उसकी समझ में यह बात एकाएक स्पष्ट हो उठी कि उसकी बेटी भी इतने दिनों में बड़ी हो गई होगी। इन आठ वर्षों में उसका क्या हुआ होगा, कौन जाने? वह उसकी याद में खो गया।
मैने कुछ रुपए निकालकर उसके हाथ में रख दिए और कहा, “रहमत! तुम अपनी बेटी के पास देश चले जाओ।“

Monday, March 29, 2010

सरजूपार की मोनालीसा: जाने क्यों वो गुल्लक आजकल मुझे घूरता रहता है

सरजूपार की मोनालीसा: जाने क्यों वो गुल्लक आजकल मुझे घूरता रहता है

जाने क्यों वो गुल्लक आजकल मुझे घूरता रहता है




जाने क्यों आजकल हर घर से बहुत शोर आता है
धब-धब-धब की आवाजें,
लगता है छत पर कोई कूद रहा है
चीखना चिल्लाना, रोना-गाना
लगता है “कुछ” हो गया

जाने क्यों आजकल सूरज भी अकड़ा हुआ है
नाराज है शायद मुझसे
सबसे पहले जगाने के लिए मुझे ही आ जाता है
मैं रात चाहे कितनी देर से सोया हूं
सुबह सबसे पहले जग जाता हूं
अपने आस-पड़ोस में सबसे पहले
बाहर निकलकर देखता हूं
तो इक्का दुक्का लोग नजर आते हैं

जाने क्यों आजकल दूसरों की बालकनी पर
कुछ ज्यादा ही सूखते कपड़े दिखते हैं मुझे
तमाम कपड़े, एक के ऊपर एक
गजे हुए से...एक दूसरे से चिपके हुए
रंग बिरंगी क्लिपों के साथ अटके हुए से

जाने क्यों आजकल मेरे घर में खाना बनाने वाला
बड़े ‘एटीट्यूड’ में रहता है
लगता है किसी पांच सितारा होटल का कुक हो
बहुत बिजी, काफी प्रोफेशनल
आता है-खाना बनाता है-चला जाता है
बात करने का टाइम ही नहीं है उसके पास

जाने क्यों आजकल मेरे बेडरूम की घड़ी
बहुत जोर जोर से आवाज करने लगी है
लगता है जानबूझकर परेशान कर रही हो
घड़ी, घड़ी की तरह नहीं
घड़ियाल की तरह बजती है
टक...टक...टक....टक
या तो इसे ठीक कराना होगा या फिर नई घड़ी खरीदूंगा

जाने क्यों आजकल घर की दीवारें एकदम बेरंग दिखती हैं
कहने को लाल-नीले-हल्के नारंगी रंग से रंगी पुती हैं
पर जाने क्यों उन रंगों में जान नहीं रही
कभी कभी तो मन करता है
कि इन पर दोबारा रंग करवा दूं

जाने क्यों आजकल बातों बातों में
आंखें गीली हो जाती हैं
कोई जीत जाए तो आंसू आ जाते हैं
कोई हार जाए तो आंसू आ जाते हैं
छिपाने पड़ते हैं अपने आंसू
लोग क्या कहेंगे, क्या सोचेंगे मेरे बारे में…

जाने क्यों वो गुल्लक आजकल मुझे घूरता रहता है
करीब 2 महीने पहले खरीदा था
90 फीसदी से ज्यादा भर भी गया है
पर पिछले एक हफ्ते से उसमें
एक रूपया तक नहीं पड़ा
क्या करूं घर लौटने पर सिक्का बचता ही नहीं जेब में
जाने क्यों...जाने क्यों...


(पिछले एक हफ्ते से शिवी इलाहाबाद में है और मैं गाजियाबाद में-अभी आधे घंटे पहले ही पता चला है कि जब वो लौटेगी तो मैं चेन्नई जा चुका रहूंगा...)

Wednesday, March 24, 2010

भारत में पहली बार


भारत में पहली बार साइन लैंग्वेज में डच फिल्मकारों की तरफ से 5 शॉर्ट फिल्मों को देखने का मौका- साधो का एक और खास कार्यक्रम।

Monday, March 22, 2010

सवालों की बौछार






एक रोज शिवी ने सवालों की बौछार कर दी
ये क्या है-वो क्या है...
ये गुल्लक है...
ये पित्ज़ा...
ये बप्पा जी हैं...
ये प्रिंटर है...
और ये इरेज़र है...
शिवी का अगला सवाल था
इरेज़र क्या होता है,
मैंने कहा
जब लिखते वक्त कोई
गलती हो जाती है
तो इरेज़र से उसे मिटा देते हैं,
शिवी बोली- मिटाकर दिखाओ,
उसे दिखाने के लिए
पहले पन्ने पर आड़ी तिरछी लाइनें खींची
फिर उन्हें मिटा कर दिखाया
खुश हो गई शिवी, बहुत खुश
मैं मन ही मन सोच रहा था
मेरी लाड़ली
काश! तूझे जिंदगी में
इरेज़र की जरूरत ही ना पड़े

(शिवी दो साल 6 महीने की हो गई है,19 तारीख को उसका मुंडन हुआ है...इस पोस्ट के साथ लगाई गई तस्वीर मुंडन से थोड़ी देर पहले की है...मुंडन के बाद की तस्वीरें भी जल्दी ही पोस्ट करूंगा। ये तस्वीरें इलाहाबाद में रहने वाले मेरे पुराने मित्र और बेहतरीन फोटोग्राफर कमल किशोर कमल ने खींची हैं।)