Wednesday, November 12, 2008

डरिएगा नहीं...


सड़क पर पड़ी लाश को देखकर;
कोई तो रूक जाता है,
उस गरीब बेसहारा औरत को;
कोई तो खाना खिलाता है,
अंदर से जमा हो रहे फॉर्म को देखकर;
कोई तो चिल्लाता है,
मैं ऐसे काम नहीं कर सकता;
कोई तो जा’के’ बताता है,
उसकी नौकरी चली जाएगी अगर....
कोई तो कुछ बातें छिपाता है.
इस काम को “ऐसे” नहीं “ऐसे” करो
कोई तो ये समझाता है,
अंकल! आपका कुछ सामान गिर गया;
कोई तो ये चिल्लाता है.
पर ये क्या
धमाका...बम ब्लास्ट
जान चली गई एक मासूम की...
बुझ गया घर का चिराग...
ये जानकर आप डरे तो नहीं?
डरिएगा नहीं....
चिल्लाने-बताने-समझाने
से बचिएगा नहीं...
थोड़ी बहुत ही सही
पर तड़प है अभी हम सबमें...

(मेहरौली में हुए धमाके के बाद लिखी गई पंक्तियां)
ये पक्तियां मेरे दूसरे ब्लॉग www.sapnokamarjana.blogspot.com पर भी हैं, क्योंकि कहीं न कहीं मुद्दा "तड़प" का है)

1 comment:

राहुल सि‍द्धार्थ said...

theek leekhaa hai aapane.jis din tarap khatm ho jaaegee us dim ham ,ham nahee rahenge.gurooparv kee badhaaee