भाई एक और बात कहना चाहता हु...आप ने जो तस्वीर लगायी है...मेरी तो ये सलाह है...उसे बदल दे...पुरुष का इतना भयावह रूप और इस्त्री की इतनी बेबस लाचार तस्वीर...पता नहीं क्यों पर ठीक नहीं है ... ऐसा मुझे लगा...सोचा कह दो...आखिर पाठक का भी तो हक बनता है...
और एक बात...अब दर्शन कह कर सिर्फ चन्द लोग ही पुकारते है , घरवालो को छोड़ कर...आप उनमे से एक है...
अपने बारे में लिखना शायद सबसे टेढ़ा काम है...खैर, 1977 में इलाहाबाद में पैदाइश. फिर 1998 में बीकाम. डाक टिकटों के संग्रह का शौक अखबारों के दफ्तर तक ले गया. कुछ अच्छे लोग मिले- कुछ बहुत अच्छे. लिखना शुरू किया. अखबारों में नाम छपा. मजा आया. पेशे के तौर पर पत्रकारिता को चुन लिया. अब करीब 10 साल हो गए. खेल पत्रकारिता के 5 साल पूरे हो गए. वर्ल्ड कप क्रिकेट से लेकर ओलंपिक तक की कवरेज हो गई.दिल में कुछ अच्छा पढ़ने, कुछ अच्छा लिखने की चाहत बाकी है...वही चाहत इस दुनिया में खींच कर लाई है.
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भाई एक और बात कहना चाहता हु...आप ने जो तस्वीर लगायी है...मेरी तो ये सलाह है...उसे बदल दे...पुरुष का इतना भयावह रूप और इस्त्री की इतनी बेबस लाचार तस्वीर...पता नहीं क्यों पर ठीक नहीं है ... ऐसा मुझे लगा...सोचा कह दो...आखिर पाठक का भी तो हक बनता है...
और एक बात...अब दर्शन कह कर सिर्फ चन्द लोग ही पुकारते है , घरवालो को छोड़ कर...आप उनमे से एक है...
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