प्रभाष जी अपने जानने वालों को अक्सर एक किस्सा सुनाते थे। ईमानदार मारवाड़ी का किस्सा। कहते थे एक ईमानदार मारवाड़ी जब मरा तो उसके बहीखाते में कई किस्म का खाता था। लाभ खाता- हानि खाता- दान खाता जैसे कई खाते....पन्ने उलटने पर पता चला कि मारवाड़ी का एक व्यवहार खाता भी था। ये व्यवहार खाता था, जो मारवाडी ने एक महिला से प्यार के दौरान दिए गए उपहारों को लेकर बनाया था। जो उसके लिए लाभ हानि से कहीं ऊपर उठकर था। ठीक उसी मारवाडी की तरह प्रभाष जी का भी एक व्यवहार खाता था। और ये व्यवहार खाता था- क्रिकेट को लेकर उनका प्यार। ऐसा नहीं था कि प्रभाष जी अपने सामाजिक सरोकारों से कटे हुए थे। हॉ, पर ये सच है कि क्रिकेट उनके दिल के बेहद करीब था।
प्रभाष जी कहते थे कि एक परिवार तो वो है जिसमें ईश्वर आपको पैदा करता है, एक परिवार वो होता है- जो आप यहां अपने आप बनाते हैं। उनके निधन के बाद उनका पूरा परिवार दिखाई दिया। जितने लोग भी आए थे, आपस में हर कोई यही बात कर रहा था कि अभी कुछ ही दिन पहले बात हुई थी, अभी कुछ ही दिन पहले मुलाकात हुई थी, अभी तो फलां को फोन करके उनका हाल चाल लिया था। सचमुच, ये प्रभाष जी का पूरा परिवार था।
अभी बीती 31 तारीख की ही तो बात है। सिर्फ 6 दिन पुरानी। भारत- ऑस्ट्रेलिया की सीरीज का तीसरा मैच दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में था। मैं मैच को कवर कर रहा था। ऑस्ट्रेलिया की पारी खत्म होने के बाद प्रेस बॉक्स के पीछे के हिस्से से निकला तो देखा प्रभाष जी किसी से बातचीत करके आ रहे हैं। मैं उनसे मिलने गया। पैर छुए और वो मेरे कंधे पर हाथ टिका कर खड़े हो गए। कहने लगे 230 का टारगेट है, ट्रिकी है थोड़ा। देखो कैसी शुरूआत होती है...फिर वो अपनी सीट पर चले गए। जैसे ही 51 रन पर सचिन का विकेट गिरा, मैं फिर बाहर आ गया, थोड़ी देर बाद प्रभाष जी भी आ गए। इस बार तसल्ली से बात हुई, फिर मेरे कंधे पर हाथ टिकाए, बोले- इस तरह की पिच पर सीधे बल्ले से ही रन बनते हैं। आड़े तिरछे बल्ले से शॉट मारा तो पवेलियन लौटना तय है। सचिन के रनआउट होने पर ना तो वो कुछ बोले ना ही मैंने कुछ पूछा। इसके बाद प्रभाष जी मुझे अपनी पिछली इलाहाबाद यात्राओं के बारे में बताने लगे। सामने कॉमेंट्री बॉक्स में सुनील गावस्कर बैठे हुए थे। प्रभाष जी उनसे मिलने गए, 2-3 मिनट बातचीत की, तब तक गावस्कर के पास कुछ और लोग पहुंच चुके थे। ऐसे लोग जो इस खेल के बिजनेस से जुड़े लोग हैं। ठीक 10-15 सेकंड के भीतर प्रभाष जी वापस अपनी कुर्सी पर लौट गए। शुक्र है कि भारतीय टीम उस मैच को जीत गई, लेकिन फिर मोहाली में हार और हैदराबाद में जीते हुए मैच में हार ने प्रभाष जी के दिल को चोट जरूर पहुंचाई होगी। आज उनके अंतिम दर्शन के लिए जुटे लोगों में से किसी ने मुझे बताया कि कोटला वाले मैच के लिए वो करीब एक घंटे की देरी से पहुंचे थे, और इस देरी के लिए वो खुद से नाराज थे।
जितने बरस से मैं क्रिकेट कवर कर रहा हूं, उतने बरस में लगभग हर मैच में कोटला के प्रेसबॉक्स में उनसे मुलाकात हुई। प्रभाष जी सफेद कुर्ता-धोती में कोने की सीट में मैच पर बारीक नजर बनाए हुए। उनके साथ टीवी पर मैच देखने का कभी मौका नहीं मिला- पर जो लोग उनके साथ टीवी पर मैच देखने का लुत्फ उठा चुके हैं, बताते हैं कि वो चौके-छक्के पर बच्चों की तरह खुश हो जाते थे, कोई खिलाड़ी गलत शॉट खेलकर आउट हो जाए तो उन्हें काफी देर तक मुंह फुलाए नाराज देखा जा सकता था। किसी बड़ी सीरीज से पहले टीवी सेट के दुरूस्त होने की जानकारी वो ले लिया करते थे। कभी संगोष्ठी में बोलने गए हैं- या किसी अन्य कार्यक्रम में, अगर कोई क्रिकेट मैच चल रहा है तो बीच बीच में स्कोर अपडेट लेते रहते थे। जो लोग उनके इस शौक से वाकिफ थे उन्हें खुद ही जाकर स्कोर बता देते थे, प्रभाष जी मुस्करा देते थे। प्रभाष जी सचिन तेंडुलकर के सबसे बड़े प्रशंसको में से एक रहे। सचिन पर जब जब किसी ने हमला बोला, ज्यादातर मौकों पर अगले ही जिन जनसत्ता के पहले पन्ने पर बॉटम में प्रभाष जी का ऐसा लेख पढ़ने को मिला जो सचिन की महानता को बताता था। हम सबको छोड़कर जाने से पहले भी प्रभाष जी ने अपने पसंदीदा खिलाड़ी की बेहतरीन पारियों में से एक पारी देखी, पर साथ ही टीम की हार भी देखी...दिल दुखा होगा उनका। प्रभाष जी सीरीज में कंगारु 3-2 से आगे निकल गए हैं...सीरीज जीतने के लिए अगले 2 मैच जीतने होंगे भारत को...प्रभाष जी आपको स्कोर का अपडेट, सीरीज का अपडेट कहां बताना होगा। अपना नया पता, नया फोन नंबर तो बताकर जाते।
(प्रभाष जी पर ये संस्मरण उनके हमें छोड़ कर जाने के तुरंत बाद लिखा था, पहले सोचा था कि इसे ब्लॉग पर नहीं डालूंगा फिर आज पता नहीं क्यों ऐसा लगा कि इसे भी ब्लॉग पर डाल देना चाहिए)